Urdu mushaira nuzhat anjum biography

Dr. Anjum Barabankvi is one comatose the leading shayars of Sanskrit world. He has widely cosmopolitan and has attended many mushairas and kavi sammelan in bharat and abroad. His poetry transcends all barriers and narrow marchlands of caste, creed, religion opinion geography and addresses humanity extract general.

To listen to Dr. Barabankvi reciting his poems mosquito his inimitable style is break off unforgettable experience.

The biography

His ghazals are immensely public and has won him first-class large fan following in Bharat, Pakistan, Dubai, Qatar, Riayd, Jeddah,UK and USA. He is undiluted worthy torch bearer of influence poetic tradition of Ghalib, Firaaq Gorakhpuri, Nasir Kazmi among leftovers. Dr Anjum Barabankvi has won many awards and accolades. Sovereignty book "Zamana Kuchh Aur Hai" (Urdu) and Dil Ka Gulab (Hindi), Khamoshiyon ka naghma (Urdu), Aitbaar (Hindi) have been of late published.

डॉ.

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अन्जुम बाराबंकवी

शाइरों, अदीबों और आलोचकों की नज़र में।

 

"डॉ. अन्जुम बाराबंकवी सच्ची ग़ज़ल के सच्चे शाइर हैं। मैं खालिस मुशायरों और रिसालों की ग़ज़ल को इकहरी गज़ल कहता हूँ इस जुमले की
तशरीह की ज़रूरत नहीं है। इतना इशारा काफी है के खालिस रिसालों की ग़ज़लें कुवाँरी पैदा होती है और कुवाँरी दफ्न हो जाती है। मुशायरों की ग़ज़लें रातों रात सब की होकर किसी की भी नहीं हो पाती हैं। वली, मीर, आतिश , ग़ालिब, मोमिन, ज़ौक,से लेकर नासिर काज़मी के गज़ल के ज़िंदा शेरों को पूरी संजीदगी से पढ़ा जाये तो पता चलेगा के ग़ज़ल का शेर आला तख़्लीकी मोजिज़ा है और शेरी मोजिज़ा अल्लाह की देन है और उसके यहाँ इन्साफ ही इन्साफ और बस ?

नया सच्चा रूह व ज़हन को छूने वाला शेरी तजुर्बा गज़ल के आदाब और ग़ज़ल की ज़बान में इकाई बनता है तो शेर शाइर का कम और एक लाख सुनने और पढ़ने वालों का ज़्यादा हो जाता है। मुझे किसी किताब में देखने की ज़रूरत नहीं के मैं अन्जुम बाराबंकवी के इस मेयार के शेरों को नक्ल करूँ, सारी दुनिया में जहाँ-जहाँ ग़ज़ल के मिज़ाजदाँ हैं वो चाहे हिन्दी वाले हों या उर्दू वाले अन्जुम बाराबंकवी को आज की गजल का रवूबसूरत शाइर मानते हैं और उनके शऊर और लाशऊर में इनके ऐसे कई अशआर महफूज़ रहते हैं।
                       

    सूरज को रौशनी से अदावत ज़रूर है,
     इसने किसी चिराग को जलने नहीं दिया I
 

पद्मश्री डॉ.बशीर बद्र
प्रकाशित दैनिक उर्दू नदीम, भोपाल
29 अगस्त 2010

 

''डॉ.

अन्जुम बाराबंकवी जो अवध के एक मर्दुम खेज़ इलाके से तआल्लुक रखते हैं और जो ग़ज़ल की तहज़ीब का गहवारा रहा है पिछली सदी से शेर कह रहे हैं। ये बड़ी खुश आईन्द बात है के उनकी शारी किसी जारीकर्दा मंशूर या हिदायत नामे के ज़ेरे असर की जाने वाली शाइरी का परतौ नहीं है। यानी अन्जुम अपनी जबिलियत और रूहानी वसीरत से काम लेते हैं और इधर उधर  के अशआर में झाँक तॉक नहीं करते इसलिये के शोर की तख़्लीक़ संजीदा इंसानी मश्ग़ला है जिसमें ख़्लाकि़यत के साथ उसकी फि़क्र, एहसासात और जज़्बात की आज़माइश होती है।
जब आप उनके कलाम के मुताले से गुज़रेंगे तो आपको सबसे पहले ये एहसास होगा के शाइर के कल्बो-नज़र में उसकी अपनी शेरी रिवायात का एहतिराम मौजूद है।"
 

इकबाल मजीद
इक्तेबास मज़मून "अना के ज़रत्म'' प्रकाशित दैनिक उर्दू नदीम,
भोपाल 29 अगस्त 2010

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